सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला।
महादलित परिसंघ के एजेंडे पर लगा मोहर।
भारत के सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कल एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कहा 70 सालों से
कुछ समुदायों के द्वारा आरक्षण का लाभ उठाया जा रहा है। जबकि उसी समुदाय के बाकी लोग आरक्षण से वंचित हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने कहा कि आरक्षित श्रेणी की सूची में जो लोग पिछले 70 साल से हैं। सरकार को आरक्षित वर्ग के उस सूची को संशोधित करना चाहिए। ऐसी सूची में अब उन लोगों को रखना चाहिए जो वाकई में इसके हकदार हैं।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 5 सदस्यीय पीठ ने कहा कि 70 सालों में *कुछ समुदायों* द्वारा आरक्षण का लाभ उठाया जा रहा है। अब वे सामाजिक और आर्थिक रूप से ठीक ठाक हो चुके हैं। मगर अभी भी उसी वर्ग के बाकी लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है। पहले से लाभ ले रहे लोगों की वजह से आरक्षण अंतिम लोगों तक नही पहुंच पा रहा है। जिनको पहले लाभ मिल गया वहीं आज भी लाभ लिए जा रहे हैं बाकी इंतेजार में हैं। इस वजह से आरक्षित वर्ग के वंचित लोगों में असंतोष ब्याप्त है।
माननीय न्यायालय ने कहा कि सरकार यह तय करे कि सभी को आरक्षण का लाभ मिले।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 5 सदस्यीय संविधान पीठ के उक्त फैसले से, *महादलित परिसंघ* के मुख्य एजेंडा ' *आरक्षण के वर्गीकरण* ' को बल मिला है। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले से हम यह महसूस करते कि महादलित परिसंघ की वर्षो पुरानी मांग जायज है, संवैधानिक है और समाज के अंतिम लोगों की हक में है। जिनको आजादी के 7 दसक के बाद भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है।
अब केंद्र/राज्यों की सरकारों को तय करना है कि वैसे हासिये के लोग जो आरक्षित कोटा में होने के बाद भी आरक्षण से वंचित है। ऐसे समाज को आरक्षण का समुचित लाभ मिले। जो आरक्षण से वंचित हैं वे कोई और नहीं, महादलित* ही तो हैं।