चतुर नीतीश कुमार !!

चतुर नीतीश कुमार !!
नीतीश कुमार द्वारा नागरिकता क़ानून में संशोधन सीएए का समर्थन बहुतों के लिए झटका था. उनमें मुसलमानों की भी अच्छी ख़ासी तादाद थी. लंबे समय से भाजपा के साथ गठबंधन की राजनीति करते रहने के बावजूद नीतीश कुमार ने अपनी सेकुलर छवि को बहुत चतुराई के साथ बचाए रखा था. लेकिन नागरिकता क़ानून में संशोधन का समर्थन ने उनकी इस छवि को बहुत नुक़सान पहुंचाया है. इसका एहसास नीतीश जी को हो गया था. बिहार की विधानसभा में एनपीआर यानी आबादी के रजिस्टर पर संशोधन का प्रस्ताव पास करवा कर नीतीश जी ने अपनी उस छवि को बचाने का प्रयास किया है.
नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर पूर्व में भी तैयार होता रहा है. विरोध की वजह उसमें जोड़े गए कुछ नए सवालों पर था. पॉपुलेशन रजिस्टर में जो नए सवाल जोड़े गए हैं उनका जवाब देना ज़रूरी नहीं है. इसकी घोषणा भारत सरकार की ओर से रविशंकर प्रसाद कर चुके हैं. एनआरसी का अभी प्रश्न ही नहीं उठता है. यह प्रधानमंत्री घोषित कर चुके हैं. इसलिए सियासत के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार ने विधानसभा में एनपीआर और एनआरसी के विरुद्ध प्रस्ताव पास कराकर अपनी धूलधुसरित सेकुलर छवि को पुनः स्थापित करने का जो प्रयास किया है उस पर भाजपा को क्या एतराज़ हो सकता है !
देश भर के शाहीन बागों में जो बेचैनी दिखाई दे रही है उसकी असली वजह तो नागरिकता क़ानून में किया गया संशोधन है. यह संशोधन हमारे संविधान की संपूर्ण संकल्पना के विरूद्ध है. तीन तलाक़ और संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध करने वाले नीतीश कुमार ने नागरिकता का आधार धार्मिक किए जाने का समर्थन कैसे कर दिया ! यह उनके चाहने वालों के लिए एक गंभीर झटका था. नीतीश कुमार इस बात को समझ रहे हैं. इसलिए चतुर नीतीश ने अपनी छवि को बचाने का ऐसा रास्ता चुना है जिस पर भाजपा को भी कोई एतराज़ नहीं हो सकता है. विधानसभा में प्रस्ताव पास करवा कर नीतीश जी ने यही दाव खेला है. कुछ हद तक यह दाव सफल होता हुआ भी दिखाई दे रहा है. लेकिन जब नागरिकता क़ानून में संशोधन के विरोध में भी प्रस्ताव पास कराने की माँग नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव द्वारा की गई तो नीतीश जी कह रहे हैं कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है. उसके फ़ैसले का इंतज़ार करना चाहिए. नरेंद्र मोदी सरकार भी तो यही कह रही है. यही तो असली मुद्दा है. इस पर भाजपा और नीतीश कुमार में किसी प्रकार का मतभेद कहाँ है !
पिछले पाँच-छ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट जिस प्रकार सरकार के लगभग हर फ़ैसले का समर्थन कर रहा है उससे लोकतंत्र और संविधान में यक़ीन करने वालों में निराशा पैदा हुई है. ऐसे में सवाल है कि क्या अपनी समझ और विवेक को तिलांजलि देकर सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक फ़ैसले के आगे आँख मुँद कर हमें सर झुका देना चाहिए !
इसलिए नीतीश कुमार के इस चाल को लेकर जो लोग बहुत ज़्यादा उत्साह दिखा रहे हैं उनको निराशा मिलने वाली है. क्योंकि न तो भाजपा नीतीश कुमार को छोड़ने वाली है और न ही नीतीश कुमार भाजपा को. नीतीश भाजपा की मजबूरी को अच्छी तरह समझते हैं. भाजपा का असली एजेंडा तो नागरिकता क़ानून में संशोधन का है. उस पर नीतीश कुमार भाजपा से अलग कहाँ हैं !
झारखंड और उसके बाद दिल्ली की हार के बाद भाजपा सतर्क है.वह समझ चुकी है कि राज्यों के चुनाव में उसके राष्ट्रवाद का मुद्दा चलने वाला नहीं है. राज्यों का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही होगा. ऐसे में अगर एनपीआर और एनआरसी पर प्रस्ताव पास कराकर नीतीश कुमार अपनी छवि सुधार कर वोट बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं तो भाजपा को इसमें नुक़सान नहीं बल्कि फ़ायदा ही है. इसलिए भाजपा इस सवाल पर, जिसमें उसका कोई नुक़सान नहीं है, नीतीश कुमार को अपना विरोधी क्यों बनाएगी ! शिवानन्द 28/2


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