उन्नाव कांड: कोर्ट के आदेश पर भी पुलिस ने नहीं दर्ज की थी एफआईआर, जांच के नाम पर की खानापूर्ति

उन्नाव कांड: कोर्ट के आदेश पर भी पुलिस ने नहीं दर्ज की थी एफआईआर, जांच के नाम पर की खानापूर्ति


नवभारत टाइम्स |रायबरेली/लखनऊ
यूपी के उन्नाव की रेप पीड़िता का आज अंतिम संस्कार होने वाला है। आरोपियों ने उसे भले ही जलाया हो, लेकिन उन्नाव की इस बेटी की मौत का जिम्मेदार पुलिस को भी माना जा रहा है। यह रायबरेली जिला स्थित लालगंज थाने की पुलिस ही थी जिसने बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने में टाल-मटोल किया जिस वजह से आरोपियों को हाई कोर्ट से जमानत पाने में मदद मिल गई। बलात्कार के उन्हीं दो आरोपियों ने जेल से छूटते ही अपने साथियों के साथ मिलकर पीड़िता को जिंदा जला दिया। अब जब पीड़िता दम तोड़ चुकी है तो पुलिस की लापरवाही और बदनीयत कदम-दर-कदम उजागर होने लगी।


*पुलिस से लेकर एसपी तक की बेरुखी*
इस जघन्य कुकृत्य के आरोपी शिवम त्रिवेदी और पीड़िता प्रेमी-प्रेमिका के तौर पर रायबरेली के साकेत नगर में किराए के कमरे में रहते थे। शिवम जब शादी से मुकर गया तो पीड़िता ने आवाज उठाई। उसके बाद शिवम ने अपनी ही प्रेमिका को सबक सिखाने की ठान ली और सुलह के बहाने उसने अपने साथी के साथ मंदिर में उसका बलात्कार कर डाला। पीड़िता 12 दिसंबर, 2018 को मुकदमा दर्ज करवाने लालगंज कोतवाली पहुंची, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। फिर पीड़िता ने 20 दिसंबर, 2018 को रायबरेली एसपी को रजिस्टर्ड डाक से शिकायती पत्र भेजा, फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई।


*मुकदमा दर्ज करने में भी उदासीन रही पुलिस*
पुलिस की बेरुखी ने पीड़िता का दर्द और बढ़ा दिया, लेकिन उसने आस नहीं छोड़ी। उसने अपर मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवाने की अर्जी दी। 10 जनवरी, 2019 को मैजिस्ट्रेट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया, लेकिन पुलिस फिर भी उदासीन रही। 26 फरवरी को कोर्ट की अवमानना की अर्जी दी गई। इसके बाद पुलिस ने 5 मार्च को मुकदमा दर्ज किया, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। सितंबर में पीड़िता सीएम के जनता दरबार पहुंची तो 22 सितंबर को आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया।


पुलिस की लचर तफ्तीश भी जिम्मेदार!
रेप पीड़िता के वकील महेश सिंह ने बताया कि देर से केस दर्ज होने और जांच के नाम पर पुलिस की खानापूर्ति के कारण हाई कोर्ट से आरोपियों को जमानत मिल गई। शादी के अनुबंध पत्र को फर्जी बताते हुए वकील ने कहा कि मामले को दबाने के लिए शिवम ने 9 जनवरी को कोर्ट में ले जाकर एक अनुबंध पत्र तैयार करवाया। इसमें न गवाहों के नाम हैं और न हस्ताक्षर।