भेड़िए हर बार भेष बदलकर आए!
सबसे पहले वो नोटबंदी के बहाने आए
मै कुछ नहीं बोला क्यूंकि मै कालाधान के बहाने पूंजीपतियों को बर्बाद होते देखना चाहता था
फिर वो जी एस टी के बहाने आए
मैं चुप रहा क्यूंकि मुझे लगता था मोटा लाला अब रास्ते में आएगा
वो बलात्कारियों के पक्ष में खड़े होते रहे
और मैं इत्मीनान से रहा क्यूंकि मेरी बहन बेटी मां सब सुरक्षित है
वो आदिवासियों से उनके जमीन छीनकर
अंबानी को देने लगे
और मैं विकास के सपने देखने लगा
फिर उन्होंने कश्मीरियों पे जुल्म किए
और मैं वहां जमीन खरीदने के सपने देखता रहा
वो मुस्लिमों को कभी भीड़ द्वारा मरवाते रहे
कभी दलितों को
और मैं इस बात से खुश था क्यूंकि मुझे लगता था कि यहीं लोग हमारी बर्बादी के जिम्मेदार है
वो नौजवानों से नौकरी छीनते रहे
और मैं चैन से रहा क्यूंकि मेरी नौकरी सुरक्षित थी
लेकिन अब वो हमारी नागरिकता भी छीनने वाले है
और सब चुप है
क्योंकि वे नहीं जानते क्या होता है नागरिक न होना
मार्टिन निलोमर की कविता से प्रेरित