क्यों समान नागरिक संहिता भारत के लिए जरुरी है?

क्यों समान नागरिक संहिता भारत के लिए जरुरी है?
“समान नागरिक संहिता”का लक्ष्य व्यक्तिगत कानूनों (धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित कानून) को प्रतिस्थापित करना है| इन कानूनों को सार्वजनिक कानून के नाम से जाना जाता है और इसके अंतर्गत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संरक्षण जैसे विषयों से संबंधित कानूनों को शामिल किया गया है|


भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता और विशेष विवाह अधिनियम 1954 लागू है जो किसी भी नागरिक को किसी विशेष धार्मिक कानून के दायरे के बाहर शादी करने की अनुमति देता है.


आइये जानते है कि अतीत में समान नागरिक संहिता की शुरूआत कहाँ से हुई थी?


1840 में ब्रिटिश सरकार द्वारा “लेक्स लूसी” रिपोर्ट के आधार पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों के लिए एकसमान कानून का निर्माण किया गया था लेकिन उन्होंने जानबूझकर हिंदुओं और मुसलमानों के कुछ निजी कानूनों को छोड़ दिया था। दूसरी ओर ब्रिटिश भारतीय न्यायपालिका ने हिन्दू और मुस्लिमों को अंग्रेजी कानून के तहत ब्रिटिश न्यायाधीशों द्वारा आवेदन करने की सुविधा प्रदान की थी| इसके अलावा उन दिनों में विभिन्न समाज सुधारक सती-प्रथा एवं अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत महिलाओं के खिलाफ हो रहे भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून बनाने हेतु आवाज उठा रहे थे|


1940 के दशक में गठित संविधान सभा में जहाँ एक ओर समान नागरिक संहिता को अपनाकर समाज में सुधार चाहने वाले डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जैसे लोग थे वहीं धार्मिक रीति-रिवाजों पर आधारित निजी कानूनों को बनाए रखने के पक्षधर मुस्लिम प्रतिनिधि भी थे| 


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