भाजपा नहीं, सिंधिया के दबाव से मुक्त होने को नाथ ने चलाया ऑपरेशन कमल



यह तथ्य है कि मप्र में मुख्यमंत्री कमलनाथ को जितनी चुनौती बीजेपी से मिलती रही है कमोबेश उतनी ही सिंधिया कैम्प से भी। नया ऑपरेशन बीजेपी असल में कमलनाथ का दोनों दबाव से मुक्त होने का प्रयास है।




मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बीजेपी के दो विधायकों को अपने पाले में लाकर अकेले बीजेपी के दबाव को ही कम नहीं किया बल्कि अपनी ही पार्टी में भी विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है इस पूरे ऑपरेशन में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की भी अदृश्य भूमिका रही है। दिग्विजय सिंह लगातार चार दिन भोपाल में डेरा डाले रहे और दिल्ली रवाना हुए तब विधानसभा में 122 का आंकड़ा सामने आ गया। यहां उल्लेखनीय है कि कमलनाथ मुख्यमंत्री के रूप में दिग्गज कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की शह से बुरी तरह परेशान हैं। उनके समर्थक मंत्री लगातार मुख्यमंत्री से अलग लाइन लेकर सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।

 

गुना से सिंधिया की अप्रत्याशित पराजय के बाद से तो सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने पहले प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिये उनका नाम आगे बढ़ाया। मंत्री इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, लाखन सिंह यादव, महेंद्र सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, उमंग सिगार, तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत की गिनती सिंधिया कोटे में की जाती है। ये सभी मंत्री सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाने के लिये दबाव बनाते रहे हैं। कुछ समय पहले तो कैबिनेट की बैठक में ही मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और मुख्यमंत्री के बीच तीखी झड़प तक हो गई थी। मुख्यमंत्री को यहां तक कहना पड़ा कि मुझे पता है आप कहाँ से संचालित हो रहे हैं। सीएम का इशारा सिंधिया की तरफ ही था। सिंधिया समर्थक मंत्री दिल्ली और भोपाल में डिनर आयोजित कर भी अलग लाइन में खड़े दिखने की कोशिशें करते रहे हैं।


यह तथ्य है कि मप्र में मुख्यमंत्री कमलनाथ को जितनी चुनौती बीजेपी से मिलती रही है कमोबेश उतनी ही सिंधिया कैम्प से भी। नया ऑपरेशन बीजेपी असल में कमलनाथ का दोनों दबाव से मुक्त होने का प्रयास है। जिन नारायण त्रिपाठी और शरद कोल को मुख्यमंत्री अपने पाले में लाये हैं वे मूलतः कांग्रेसी ही हैं और बीजेपी में इनकी एंट्री तबके सीएम शिवराज सिंह चौहान और संगठन महामंत्री रहे अरविंद मेनन ने कराई थी। दोनों विधायक कांग्रेस के पाले में जाने से पहले शिवराज सिंह चौहान से भी मिले थे। नारायण त्रिपाठी सतना जिले की मैहर सीट से पहली बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बने थे फिर बाद में वे कांग्रेस में शामिल होकर सिंधिया की सिफारिश पर टिकट भी पा गए और जीत भी गए। विंध्य की राजनीति में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की सियासत में नारायण त्रिपाठी अजय सिंह के धुर विरोधी हैं। 2014 में जब अजय सिंह सतना से लोकसभा का चुनाव लड़े तो कांग्रेस विधायक रहते हुए नारायण त्रिपाठी ने खुलकर बीजेपी के पक्ष में काम किया और अजय सिंह बहुत ही मामूली अंतर से चुनाव हार गए इस हार के लिये नारायण त्रिपाठी को जिम्मेदार माना गया। तबके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नारायण त्रिपाठी को ईनाम बतौर बीजेपी ज्वाइन कराकर उपचुनाव करा दिया। मुख्यमंत्री की बात पर मैहर की जनता ने नारायण त्रिपाठी को जिता भी दिया। 2018 में अपनी अकूत दौलत के बल पर नारायण त्रिपाठी फिर से जीतने में सफल रहे।

 

दूसरे विधायक शरद कोल भी कांग्रेस से आए हैं, उनके पिता अभी भी शहडोल जिले में कांग्रेस के पदाधिकारी हैं। दंड विधान के जिस विधेयक पर मत विभाजन में कांग्रेस को 229 सदस्यीय सदन में 122 सदस्यों का समर्थन मिला है उनमें 114 कांग्रेस, 2 बसपा, एक सपा और चारों निर्दलीयों के साथ दो बीजेपी सदस्य शामिल रहे हैं। इसमें स्पीकर ने वोट नहीं दिया।

 

इस नए राजनीतिक घटनाक्रम में मुख्यमंत्री कमलनाथ जहां सामने नजर आ रहे हैं वहीं पर्दे के पीछे से बिसात बिछाने का काम दिग्विजय सिंह ने किया। मप्र की सियासत में इस समय दिग्विजय और कमलनाथ की युगलबंदी सिंधिया को लगातार दरकिनार कर रही है क्योंकि सिंधिया समर्थक मंत्री लगातार सार्वजनिक रूप से दबाव बनाकर सरकार के इकबाल को कमजोर करने में लगे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी भी आये दिन सरकार को धमकाने के अंदाज में आंखें दिखाती रही है। ऑपरेशन कर्नाटक के समय से ही कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी बीजेपी के छह विधायकों पर काम कर रही थी। विंध्य के इन दो विधायकों के अलावा बुंदेलखंड के एक पूर्व मंत्री और सीहोर तथा सिवनी के विधायक भी कांग्रेस के राडार पर हैं। सतना जिले के ही एक दूसरे विधायक जो एक बड़े सियासी खानदान से हैं, कांग्रेसी प्रबंधकों के निशाने पर हैं। इन सभी के साथ समानता यह है कि ये मूलतः बीजेपी के न होकर कांग्रेसी ही हैं।

 


कमलनाथ बीजेपी के खेमे में सेंध लगाकर मनोवैज्ञानिक रूप से बीजेपी के साथ कांग्रेस के सिंधिया कैम्प को भी स्पष्ट और सख्त सन्देश देना चाहते हैं। फिलहाल बीजेपी के लिये मप्र में बिल्कुल अप्रत्याशित हालात बन गए हैं। उसकी समस्या असल में उस कार्य संस्कृति की है जिसमें बाहर से आये नेताओं को आसानी से समायोजित होने में बहुत ही मुश्किल आती है। पूर्व मंत्री और नेता प्रतिपक्ष रहे राकेश चौधरी की दुर्गति जगजाहिर है। पूर्व मंत्री बालेंदु शुक्ला, प्रेमनारायण ठाकुर, असलम शेर खान, भागीरथ प्रसाद जैसे बीसियों उदाहरण मप्र में हैं जो बीजेपी में आकर अलग-थलग होकर रह गए।

 

बीजेपी के साथ इस समय समस्या मप्र के नेतृत्व को लेकर भी है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह निसन्देह मप्र के एकमात्र लोकप्रिय नेता हैं पर वे न प्रदेश अध्यक्ष हैं न नेता विपक्ष, लेकिन मप्र की सियासत उनके बगैर पूरी नहीं है। यही पेंच बीजेपी के लिये भी बुनियादी रूप से परेशानी का सबब है। मुख्यमंत्री के रूप में जिस तरह से शिवराज सिंह एक टीम बनाकर सत्ता और संगठन को हैंडिल किया करते थे वो बात इस समय मप्र की बीजेपी में नजर नहीं आ रही है। नारायण त्रिपाठी औऱ सतना के बीजेपी सांसद गणेश सिंह के बीच लोकसभा चुनाव के बाद से ही जबरदस्त जंग छिड़ी हुई थी। बीजेपी संगठन ने इसे बहुत हल्के में लिया। ताजा घटनाक्रम असल में इसी टीम स्प्रिट के अभाव का नतीजा ही है। जिन विधायकों का जिक्र ऊपर किया गया है उनके बारे में सरकार बदलने के साथ ही सार्वजनिक रूप से चर्चाओं का बाजार गर्म है लेकिन क्या एहतियात बरती गयी, यह सामने ही है। नेता विपक्ष कोई असरकारी और स्वीकार्य भूमिका में नजर नहीं आ पाए हैं। फिलहाल बीजेपी के लिये मप्र में चुनोती अब ज्यादा बड़ी हो गई है क्योंकि 122 विधायक का मतलब कमलनाथ सरकार को नहीं अब खतरा बीजेपी को अपना घर बचाने का है।

 

वैसे दो विधायक को अपने पाले में लाने से कमलनाथ बेफिक्र होकर नहीं बैठ पाएंगे क्योंकि अगर दोनों इस्तीफा देकर चुनाव लड़ते हैं तो उनके जीतने की संभावना फिफ्टी फिफ्टी ही है। दूसरा नारायण त्रिपाठी को किसी भी बड़ी भूमिका में विंध्य के नेता अजय सिंह राहुल किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं करेंगे क्योंकि उनके राजनीतिक पराभव में त्रिपाठी एक बड़ा फैक्टर रहे हैं। जाहिर है ये निर्णय केवल बीजेपी और सिंधिया ही नहीं विंध्य के नेता अजय सिंह के लिये भी आसानी से पचाने वाला नहीं है। उधर बीजेपी भी अब आक्रामक होकर नए ऑपरेशन का आगाज करेगी जैसा कि इस खेल के सिद्धहस्त पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि खेल शुरु कांग्रेस ने किया है पर खत्म हम ही करेंगे। इसलिये मप्र में सियासी रोमांच तेजी से बढ़ेगा यह तय है।